उत्तराखंड मिशन 2022 : सत्ता की चाहत क्या क्या करने को कर देगी मजबूर?

मिशन २०२२ राजकाज
News Uttarakhand

ट्वीट बम से कांग्रेस को हरीश रावत ने डाला था सियासी सं​कट में,
चलती कैबिनेट में हरक के इस्तीफे ने भाजपा को डाला मुश्किल में,
कांग्रेसी कलह से बनी बढ़त को हरक सिंह रावत ने किया बराबर,
अब समान स्थिति में भाजपा और कांग्रेस दोनों,आप ने किये हमले तेज

प्रदेश में सत्ता में काबिज भाजपा हो या फिर सत्ता में फिर ​काबिज होने को ललायित कांग्रेस, दोनों दलों के नेताओं की कारगुजारियां अपने अपने दलों के कार्यकत्तओं को शर्मसार कर दे रही हैं। जी हां पहले कांग्रेस के हरीश रावत ने खुद को कमजोर होने के सार्वजनिक दर्द जाहिर किया तो सूबे में राजनैतिक तूफान आ गया,
चर्चा तों यहां तक होने लगी कि हरीश रावत कांग्रेस को छोड़ देगें।

वहीं दूसरी ओर भाजपा इस का सियासी लाभ उठा पाती उससे पहले भाजपा के घर में हरक सिंह रावत ने कूदना और फुदुकना शुरू कर दिया। हरीश रावत ने तो शब्दों के वाण से घमासान मचा तो हरक एक कदम आगे निकल का मिस्टर इंडिया बन गये।

पहले तो उन्होंने अपनी विधानसभा के विकास कार्यो की अनदेखी का मुद्दा बनाया और फिर मात्र 5 महीने से कुर्सी पर बैठे पुष्कर सिंह धामी समेत देहरादून से ​लेकर दिल्ली तक के नेताओं की नींद उड़ा दी।

अपनी कैबिनेट के 50 से भी ज्यादा चुनावी निर्णयों का मजा सरकार लेने ही वाली थी कि हरक ने भाजपा की पूरी खीर में मिर्च झोक दी। ऐसे में कांग्रेस की कलह से बनी भाजपा की सियासी बढ़त हरक के ड्रामे ने फिर बराबर की स्थिति में ला छोड़ दी।

हां, उत्तराखंड की सत्ता पर दिल्ली से आह भरने वाली आम आदमी पार्टी को जरूर एक बार फिर दोनों दलों पर बरसने का मौका मिल गया। अब देखना है कि कांग्रेस और भाजपा के बड़े चेहरे हर घर की आग में कब तक घी डालने का काम करेगें?

हरीश रावत का ट्वीट बम
पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने दो दिन पहले इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट में अपनी ही पार्टी को निशाने पर लेते हुए राजनीति से संन्यास लेने की धमकी भी दे डाली थी। इससे कांग्रेस में भूचाल आ गया था। ये बात अलग है कि कांग्रेस में आया गतिरोध फिलहाल खत्म हो गया है, लेकिन इससे मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक तौर पर भाजपा को प्रदेश में बढ़त मिली।

वे उत्तराखंड को क्या संभालेंगे?
आगामी विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई के सतह पर आने से सीधे तौर पर इसका फायदा भाजपा को मिलना तय माना जा रहा था। पार्टी ने यद्यपि हरीश रावत प्रकरण को कांग्रेस का अंदरूनी मामला बताया, लेकिन चुनावी दृष्टि से उसने राज्य में हरीश रावत और कांग्रेस को घेरने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया था। इस कड़ी में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अन्य नेताओं ने कांग्रेस को निशाने पर लेना शुरू कर दिया था। साथ ही यह संदेश देने का प्रयास भी किया कि जो लोग अपनी पार्टी को नहीं संभाल सकते, वे उत्तराखंड को क्या संभालेंगे।

 

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