Phuldei Festival In Uttarakhand : उत्तराखंड में 14 मार्च से चैत्र मास फूलदेई या फूल संक्रांति का लोक पर्व मनाया जा रहा है। गर्मियों के आगमन का अहसास दिलाने वाले चैत्र मास का देवभूमि में विशेष महत्व है। चैत्र महीने की शुरुआत से लेकर अंत तक घरों कि चौखट पर रंग-बिरंगे फूल डाले जाते है। फूलदेई लोकपर्व आज भी उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति से लोगों को जोड़े हुए है।
पौराणिक मान्यता :
Phuldei Festival In Uttarakhand : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फूलदेई का लोक पर्व शिव और माता पार्वती को समर्पित किया गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी समाधि में कई युगों से लीन थे। कई मौसम गुजरने के बाद भी माता पार्वती और शिवगणों को शिव दर्शन नहीं हो पा रहे थे। तब माता पार्वती ने शिवजी को समाधि से जगाने के लिए ऐसी तरकीब निकाली। माता पार्वती ने कैलाश के सबसे पहले खिलने वाले फूल प्योंली से शिवगणों को सुसज्जित कर उन्हें अबोध बच्चों का रूप प्रदान कर दिया।
Phuldei Festival In Uttarakhand :
इसके बाद माता ने सभी अबोध बच्चों को देवताओं की पुष्प वाटिका से सुंदर खुशबूदार फूल तोड़ लाने को कहा। इन पुष्पों को सबसे पहले भगवान शिव की तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किया गया, जिसे फूलदेई कहा गया। इन फूलों से पूरा कैलाश मधुर सुगंध से महकने लगा। जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने अपनी समाधि तोड़ी और इस पर्व में शामिल हो गए। तब से माता पार्वती द्वारा भगवान शिव को यह पुष्प आज भी अबोध बच्चों के रूप में समर्पित किये जाते हैं। साथ ही उत्तराखंड में आज भी इसे पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है।
ऐसे मनाया जाता है :
Phuldei Festival In Uttarakhand : चैत्र की संक्रांति से फूल खिलने शुरू हो जाते हैं। वही बसंत ऋतु के स्वागत के लिए इस पर्व को मनाया जाता है। फूलदेई के दिन से प्रकृति का नजारा ही बदल जाता है। उत्तराखंड में फूलदेई मनाने के लिए बच्चे अपनी टोकरी में खेतों और जंगलों से रंग-बिरंगे फूल चुनकर लाते हैं। फिर उन चुनकर लाए फूलों को हर घर की चौखट पर चढ़ाते हैं। और चावल अर्पित कर इस लोक पर्व के दौरान बच्चे लोकगीत गाते हैं फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार, तुमार देली में बार-बार नमस्कार’ गीत गाकर लोगों की सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
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