Dronnagari Uttarakhand : देहरादून सहारनपुर मार्ग पर गौतम ऋषि की प्राचीन तपस्थली द्रोणनगरी है। यह स्थान गौतम ऋषि का साधना स्थल चंद्रबनी है। मान्यता है कि यहां गौतम ऋषि के आह्वान पर गंगा नदी विपरीत दिशा में बही थी। इसके साथ ही यह जगह इसलिए भी प्रसिद्ध है कि यहां पवनपुत्र हनुमान का भी जन्म हुआ था।
सन् 1951 में हुई मंदिर की स्थापना :
Dronnagari Uttarakhand : देहरादून-सहारनपुर मार्ग पर जंगलों के बीच स्थित इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यहां गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या के साथ रहते थे। यहीं पर माता अंजनी के बाद में उनके पुत्र हनुमान जी का जन्म हुआ था। सन् 1951 में संत खटपटी बाबा सीताराम जी आए और उन्होंने ही यहां पर बाबा बालकनाथ के मंदिर की स्थापना की। बीते 70 सालों में अब यह स्थान एक धार्मिक पर्यटक स्थल बन गया है। यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने व प्रसाद चढ़ाने आते हैं।
पौराणिक मान्यता में माना जाता है :
Dronnagari Uttarakhand : पुराण में बताया गया है कि रोज सुबह मुर्गे की बांग सुन गौतम ऋषि गंगा स्नान को जाया करते थे। एक बार चंद्र (चांद) की नीयत अहिल्या पर खराब हो गई तो चंद्र ने मुर्गा बन आधी रात में ही बांग दे दी। इसे सुन गौतम ऋषि गंगा स्नान को चले गए। इस दौरान चंद्र गौतम ऋषि का वेश धर कुटिया में आ गए। और गौतम ऋषि ने गंगा नदी पहुंचने पर जैसे ही डुबकी लगाई तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके साथ छल हुआ है। वे जैसे ही वापस आए तो उन्हें देख चंद्र देवता भाग रहे थे। इस पर उन्होंने अपना गीला अंगवस्त्र फेंककर चांद को मारा।
Dronnagari Uttarakhand :
अंगवस्त्र का वह निशान आज भी साफ देखा जा सकता है। साथ ही यह भी माना जाता है अहिल्या यहां पत्थर की शिला बन गई थीं। कहा जाता है जब चंद्र माता अहिल्या के कमरे से भागता देख तो गौतम ऋषि नें पत्नी अहिल्या पर पति को धोखा देने का आरोप लगाते हुए उन्हें मूर्ति बन जाने का श्राप दे दिया। इसके बाद वे वहीं पर पत्थर की शिला बन गई थीं। तब वहां गंगा प्रकट हुई थी। चंद्र के धोखे के बाद गौतम ऋषि के लिए ही गंगा विपरीत दिशा में जाकर चंद्रबनी में निकली थी। जिसे आज गौतम कुंड के नाम से जाना जाता है।
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