History of Nath : कहा जाता है की उत्तराखंड की महिलाओं के श्रृंगार का नथ अभिन्न हिस्सा है और बिना नथ के श्रृंगार पूरा नहीं माना जाता, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है की आखिर नथ क्यों पहनी जाती है और क्या कुछ इसका पूरा इतिहास रहा है, शायद आप नहीं जानते होंगे तो आज हम आपको बताएंगे उत्तराखंड की नथ का क्या कुछ इतिहास रहा है और क्यों ये पहनी जाती है।
History of Nath :
टिहरी में रजवाड़ों के समय से चली आ रही है नथ पहनने की प्रथा :
History of Nath : उत्तराखंड की महिलाएं जब भी श्रृंगार करती हैं तो नथ जरूर पहनती है क्योंकि उत्तराखंड में नथ को सुहाग की निशानी माना जाता है और इसके साथ ही नथ श्रृंगार की चमक को दोगुना कर देती है। ऐसा माना जाता है कि नथ का इतिहास तब से है जब से टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और राजाओं की रानियां सोने की नथ पहनती थी। नथ के पीछे की मान्यता रही है कि परिवार जितना सम्पन्न होगा महिला की नथ का वजन उतना ही ज्यादा और बड़ा होगा।
कुमाऊँ—गढ़वाल में बदला दिखेगा नथ का सवरूप :
उत्तराखंड राज्य को दो भागों में बांटा गया है और वो है कुमाऊँ मंडल और गढ़वाल मंडल। दोनों ही मंडलों का पहनावा और रीति रिवाज़, बोली में अंतर देखा जाता है। हालंकि दोनों ही जगह नथ पहनने का प्रचलन कायम है लेकिन दोनों जगहों पर नथ में काफी अंतर देखा जाता है। गढ़वाल की ओर नज़र घुमाएं तो यहां टिहरी की नथ देश—दुनिया में काफी प्रसिद्ध है जो आकार में मीडियम साइज़ की होती है और भरे हुए डिजाइन की होती है दूसरी तरफ कुमांऊनी नथ की बात करें तो इसमें ज्यादा डिजाइन नहीं होता लेकिन ये आकार में काफी बड़ी और वजनदार होती है और यही वजह है कि महिलाओं को इससे काफी दिक्कते होने लगी।
History of Nath :
वजन भारी होने की वजह से बदलता गया नथ का साइज़ व सवरूप :
नथ को सुहाग की निशानी माना जाता है इसलिए पहले महिलाएं नथ रोज़ पहनकर रोज़ उतारा करती थी लेकिन रोज़ाना नथ पहनने से महिलाओं को काफी दिक्कते होने लगी। लगभग दो दशक पहले तक महिलाएं रोज़ाना नथ पहना करती थी और नथ का वज़न भी तीन तोले से शुरु होकर पांच तोले और कभी कभी 6 तोला तक रहता था और यदी गोलाई की बात करें तो नथ की गोलाई भी 35 से 40 सेमी तक होती थी और ये पहनने में काफी भारी लगती थी
History of Nath : जिसकी वजह से महिलाओं की नाक फट तक जाया करती थी। जिसके बाद नथ के आकार और वजन में बदलाव होने लगा और इस बदलाव ने आगे चलकर स्टाइलिश नोज़ रिंग का स्वरूप ले लिया। हालंकि अभी भी धार्मिक अनुष्ठान और मांगलिक कार्यों में नथ पहनने का प्रचलन कायम है जो उत्तराखंड की संस्कृति को आज भी संझोए हुए है।
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