Dhari Devi Temple Of Uttarakhand : देवभूमि उत्तराखंड में वैसे तो कई मंदिर और तीर्थस्थल मौजूद हैं। लेकिन कुछ ऐसे रहस्यमयी मंदिर भी यहां मौजूद हैं, जो भक्तों के लिए आस्था का केंद्र होने के साथ ही लोगों को हैरान करते हैं। ऐसा एक भव्य मन्दिर पौड़ी जिले के श्रीनगर गढ़वाल से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यह मंदिर काली माता को समर्पित माना जाता है। इस मंदिर को मॉं धारी देवी के नाम से जाना जाता है।
यहा हर दिन एक चमत्कार होता है :
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand : उत्तराखंड की संरक्षक एवं पालकी देवी के रूप में माना जाता है। इस मंदिर में देवी का मूर्ति का सिर्फ ऊपरी भाग सिर स्थित है। यह मंदिर इस क्षेत्र में बहुत पूजनीये है, लोगों का मानना है कि यहाँ धारी माता की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं। मूर्ति सुबह एक कन्या की तरह दिखती है, दोपहर में युवती और शाम को एक वृद्ध महिला की तरह नजर आती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार :
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand : पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है, यह कहानी तब की है जब माँ धारी देवी केवल सात साल की थी। माता धारी देवी के माता – पिता के जल्दी गुजर जाने के कारण धारी देवी का पालन – पोसण अपने भाइयों के हाथों से ही हुआ था और उनके लिए अपने भाई ही सब कुछ थे। माता धारी देवी 7 भाइयों की इकलौती बहन थी। माता धारी देवी अपने सात भाइयों से बहुत प्रेम करती थी, और उनकी अत्यंत सेवा करती थी। परन्तु जब उनके भाइयों को यह पता चला कि उनकी इकलोती बहन के ग्रह उनके लिए खराब हैं तो उनके भाई उनसे नफरत करने लगे।
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand :
वैसे तो माता धारी देवी के सातों भाई माँ धारी देवी से बचपन से ही नफरत करते थे, क्योंकि माँ धारी देवी का रंग बचपन से ही सांवला था। धीरे धीरे समय बीतता गया और धारी माँ के भाइयों की धारी माँ के प्रति नफरत बढ़ती गयी, परन्तु एक समय ऐसा आया जब माँ धारी देवी के पाँच भाइयों की मोत हो गयी। और केवल दो शादी – शुदा भाई ही बचे थे। और इन दो भाईयों की परेशानी और बढ़ती गयी। क्योंकि इन दो भाइयों को ऐसा लगा कि हमारे पाँच भाइयों की मोत हमारी इकलोती बहन के कारण तो नहीं हुई। क्योंकी हमारी बहन के ग्रह हमारे लिए खराब हैं। उन्हें बचपन से यही लगता था।
माँ धारी देवी मृत सिर को नदी में बहा दिया :
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand : जब माँ धारी देवी केवल 13 साल की थी तो उनके दोनों भाइयों ने उनका सिर उनके धड़ से अलग कर दिया और उनके मृत – शरीर और सिर को रातों रात नदी में बहा दिया। वहाँ से माँ धारी देवी का सिर बहते – बहते कल्यासौड़ के धारी नामक गाँव तक आ पहुँचा, जब सुबह – सुबह का वक्त था। तो धारी गाँव में एक व्यक्ति नदी के किनारे पर कपड़े धुल रहा था तो उन्होंने सोचा कि नदी में कोई लड़की बह रही है ।
कैसे व्यक्ति ने कन्या को बचाया :
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand : उस व्यक्ति ने कन्या को बचाना चाहा परन्तु वह यह सोचता कि में वहाँ जाऊँ तो जाऊँ कैसे, क्योंकि नदी में पानी का बहुत ही ज्यादा तेज बहाव था और वह इस डर से घबरा गया कि में कहीं स्वंय ही न बह जाऊँ जिस डर वह नदी में नहीं जाता। परन्तु अचानक एक आवाज नदी से उस कटे हुए सिर से आयी
जिसने उस व्यक्ति का धैर्य बढ़ा दिया, वह आवाज थी कि तू घबरा मत और तू मुझे यहाँ से बचा। और मैं तेरे को यह आश्वासन दिलाती हूँ कि तू जहाँ जहाँ पैर रखेगा में वहाँ वहाँ पे तेरे लिए सीढ़ी बना दूँगी।
कैसे मन्दिर कि स्थापना हुई :
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand : जब वह व्यक्ति नदी में गया तो उस व्यक्ति ने उस कटे हुये सिर को जब कन्या समझ कर उठाया तो वह व्यक्ति अचानक से घबरा गया वह जिसे कन्या समझ रहा था वह तो एक कट हुआ सिर है। फिर उस कटे हुए सिर से आवाज आई कि तू घबरा मत में देव रूप में हूँ और मुझे एक पवित्र, सुन्दर स्थान पर एक पत्थर पर स्थापित कर दे।
उस व्यक्ति ने उस कटे हुए सिर को एक पत्थर पर स्थापित किया तो उस कटे हुए सिर न अपने बारे में सब कुछ बताया। और एक पत्थर का रूप धारण कर लिया। तब से उस पत्थर की वहाँ पर पूजा अर्चना होने लगी और वहाँ पर एक सुन्दर धारी देवी मंदिर बनाया गया था।
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand :
धारी देवी की यह भी मान्यताएं है :
Dhari Devi Temple Of Uttarakhand : कहते हैं कि मां धारी के मंदिर को साल 2013 में तोड़ दिया गया था और उनकी मूर्ति को उनके मूल स्थान से हटा दिया गया था, इसी वजह से उस साल उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। माना जाता है कि धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था और उसके कुछ ही घंटों बाद राज्य में आपदा आई थी। बाद में उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया गया।
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