Musical Instruments Of Uttarakhand : आज उत्तराखंड में हर वो आधुनकि वाद्य यंत्र उपयोग में लाया जाता है। जो अलग — अलग देशों में संगीत के क्षेत्र में उपयोग किया जाता है। जिसके कारण हम अपने वाद्य यंत्र को भूलते जा रहे है यही वजह है कि आज लोग पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़ मैदानी इलाकों की ओर जा रहे हैं। इसके चलते मैदानी इलाकों में हमारी संस्कृति में तेजी से परिवर्तन आ रहा है
Musical Instruments Of Uttarakhand : जिससे हम अपनी पौराणिक संस्कृति को पीछे छोड़ रहे है तथा उन संस्कृतिक नृत्य या देव नृत्य में उपयोग होने वाले वाद्य यंत्रों को विलुप्त कर रहे है। लेकिन अभी भी ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी वाद्य यंत्र उपयोग किया जाता है जो उत्तराखंड की संस्कृति को दर्शाते है।
Musical Instruments Of Uttarakhand :
उत्तराखंड कि पौराणिक वाद्य यंत्रों की संख्या ज्याद तो नहीं है।
1. हुड़की (हुड़का)
2. डौंरू
3. कांशी की थाल
4. बाँसुरी
5. तुहरी (रणसिंघा) (भंकोर)
6. ढोल
7. दमाऊं
8. मस्कबाजू या मशकबीन
Musical Instruments Of Uttarakhand : जानिए : उत्तराखंड कि पौराणिक वाद्य यंत्रों कहां किया जाता है।
1. हुड़की (हुड़का) :— हुड़की का प्रयोग जागर गायन, मनोरंजन कार्यक्रम और कला संगीत में होता आ रहा है। हुड़की गढ़वाल तथा कुमाऊं मंडल में अपनी मविशेष पहचान रखती है हुड़की बीच से इतनी पतली होती है कि एक हाथ की मुट्ठी की पकड़ में आसानी से आ जाती है ।
2. डौंरू :— यह उत्तराखंड का प्रचलित वाद्य यंत्रों में से एक है इसको बजाने वाले वाधक को धमी कहते है। यह विलुप्त की कागार पर है क्योंकि धामी अब आसानी से नहीं मिलते। और ढ़ोल जैसे वाद्य यंत्र इसकी स्थान ले रहे है तथा ढ़ोल आसानी से मिल जाता है। डौंरू का सर्वधिक उपयोग देवी— देवताओं को नचाने में किया जाता हैं। यह आकार मे छोटा होता है धमी इसको अपनी जाँघ के बीच रख के बजाता है। यह अकेला नहीं बजाया जाता इसके साथ कांशी की थाल का उपयोग होता है।
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3. कांशी की थाल (थाली) :— कांशी की थाल को उत्तराखंड में वाद्य यंत्र केे रूप मे प्रयोग किया जाता है। कांशी की थाली का उपयोग एक ही विशेष कार्य में किया जाता है जिस वजह से यह ज्यादा प्रसिद्धि नहीं है। यह स्थानीय देवी— देवताओं को नचाने में डौंरू के साथ बजाई जाती है। इस पर कभी भोजन नहीें परोसा जाता है तथा इसेे देवी — देवताओं के पूजा के स्थान पर ही विदयमान किया जाता है।
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4. बाँसुरी :— बाँसुरी भी उत्तराखंड पौराणिक वाद्य यंत्रों में सम्मिलित थी । उत्तराखंड की अनेक पौराणिक कथाओं में बाँसुरी का प्रसंग आपको अवश्य मिलेगा। साथ ही बाँसुरी का प्रयोग उत्तराखंड की मनोरंजन कार्यक्रम और कला संगीत में भी किया जाता है।
5. तुहरी (रणसिंघा) (भंकोर) :— तुहरी (रणसिंघा)(भंकोर) उत्तराखंड के पौराणिक वाद्य यंत्रों में से एक है। यह दो प्रकार के होते है एक जो बिल्कुल सीधा होता है (भंकोर) । और दूसरा जो कुछ घुंमाउदार संरचना के होते है (रणसिंघा)। इन्हें दो प्रकार से उपयोग किया जाता था पहले के समय में राज भवनों के मुख्य द्वार पर चेतना का संकेत के रूप में । दूसरा स्थानीया देवी — देवता जब नदियों के संगम पर स्नान करते है।
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6. ढोल :— उत्तराखंड के पौराणिक वाद्य यंत्रों में से एक है। जो आज अपनी पहचान का मोहताज है यह उत्तराखंड में बहुत प्रिसद्ध और प्रचलित वाद्य यंत्रों है इसका उपयोग शादी विवाह,नाच — गाने, मनोरंजन कार्यक्रम और जागर जैसे प्रचिलत रीति रिवाजों के लिए सर्वाधिक प्रिया वाद्य यंत्र है। इसको अलग — अलग सुरों में बजाया जा सकता है। इसके साथ शब्दों को लैबध करने में दमाऊं की अहम भूमिका है ।
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7. दमाऊं :— दमाऊं भी उत्तराखंड के पौराणिक वाद्य यंत्रों में से एक है। दमाऊं का उपयोग
ढोल के साथ किया जाता है ढोल का स्वर पूरक है दमाऊं । इसका नाम ढोल के साथ इस प्रकार लिया जाता है कि मानों एक ही वाद्य यंत्र हो हालांकि दोनों वाद्य यंत्र अलग— अलग होते है। ढोल बड़ा होता है तथा दमाऊं छोटा होता है।
8. मस्कबाजू या मशकबीन :— यह वाद्य यंत्र उत्तराखंड में अंग्रेजों की देन है। यह उत्तराखंड में बहुत प्रचलित वाद्य यंत्र है इसका सेना के विशिष्ट बैंड में विशेष महत्व है। तथा विवाह में मंगल स्नान के समय इसका उपयोग किया जाता है। यह अब बहुत कम देखने को मिलता है। जिस कारण कला पर भी संकट मंडराता जा रहा हैं ।
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