Tungnath World’s Highest Shiva Temple : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है ऐसी भूमि जहां देवी — देवता निवास करते है। वही उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। जो तुंगनाथ ,टोंगनाथ या टुनगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो समुद्र की सतह से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर को 5000 वर्ष पुराना माना जाता है। और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है
यह मंदिर क्यों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
Tungnath World’s Highest Shiva Temple : उत्तराखंड अपनी धर्म और आस्था के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। यहाँ मौजूद मंदिरों की संख्या से जाना जा सकता है कि लोगों कि भगवान में आस्था कितनी है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हैं। चोपता की ओर बढते हुए रास्ते में बांस और बुरांश का घना जंगल और मनोहारी दृश्य पर्यटकों को लुभाते हैं। चोपता समुद्रतल से बारह हज़ार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से तीन किमी की पैदल यात्रा के बाद तेरह हज़ार फुट की ऊंचाई पर तुंगनाथ मंदिर है, इस मंदिर में शिव भगवान की भुजाओं की पुजा की जाती हैं।
Tungnath World’s Highest Shiva Temple : तुंगनाथ का मंदिर अपने सौन्दर्य और वास्तुशिल्प के लिए भी जाना जाता है. इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने योग्य होती है। इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करते है । सबसे विशेष बात ये है कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में ये अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और पर्यटकों की साधारण पहुंच में है।
Tungnath World’s Highest Shiva Temple :
उत्तराखंड के तुंगनाथ मंदिर का इतिहास और मान्यताएं ।
Tungnath World’s Highest Shiva Temple : पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है मन्दिर स्वयं में कई कथाओं को अपने में समेटे हुए है। कथाओं के आधार पर यह माना जाता है कि जब व्यास ऋषि ने पांडवों को सलाह दी थी कि महाभारत युद्ध के दौरान जब पांडवों ने अपने चचेरे भाई की हत्या की थी, तो उनका यह कार्य केवल भगवान शिव द्वारा माफ़ किया जा सकता था। इसलिए पांडवों ने शिव से माफ़ी मांगने का निर्णय लिया। पर भगवान शिव उनसे बहुत नाराज थे इसलिए उन्हें माफ़ नहीं करना चाहते थे। इसलिए पांडवों को दूर रखने के लिए, शिव ने एक बैल का रूप ले लिया।
Tungnath World’s Highest Shiva Temple : और हिमालय को छोड़ कर गुप्तकाशी चले गए लेकिन पांडवों ने उन्हें पहचान कर वहा भी उनका पीछा किया लेकिन बाद में शिव ने अपने शरीर को बैल के शरीर के अंगों के रूप में पांच अलग-अलग स्थानों पर डाला,जिसमे से तुंगनाथ तृतीया केदार के रूप में पूजा जाता है जहां पांडवों ने उनसे माफी और आशीषों की मांग करते है। तथा प्रत्येक स्थान पर भगवान शिव के मंदिरों का निर्माण किया।
कब से कब तक कर सकते तुंगनाथ मंदिर की यात्रा ।
Tungnath World’s Highest Shiva Temple : पंच केदार के तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट को शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। मई से नवंबर तक यहां कि यात्रा की जा सकती है। जनवरी व फरवरी के महीने में यह आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े लेता है। बर्फ गिरी होने के कारण से वाहन की यात्रा कम और पैदल यात्रा अधिक होती है। जनवरी व फरवरी के महीने में भी लोंग यहां की बर्फ के मजा लेने के लिए आते है। भगवान तुंगनाथ छह माह की शीतकालीन पूजा-अर्चना के लिए अपने शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कण्डेय मंदिर मक्मूमठ में विराजमान किए जाते है। उस दौरान मंदिर कपाट बंद रहते हैं।
एक अन्य कहानी के मुताबिक यह भी माना जाता है।
Tungnath World’s Highest Shiva Temple : इस मंदिर का निर्माण नवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है. मंदिर के भीतर भगवान शिव, व्यास ऋषि और आदिगुरु शंकराचार्य की मूर्तियाँ हैं. तथा यह भी कहा जाता हैं। तथा तुंगनाथ से थोड़ी दूर करीब दो सौ मीटर अधिक की ऊंचाई वाली एक दूसरी पहाडी पर चंद्रशिला है. पौराणिक समय से मान्यता है कि तुंगनाथ में शिवलिंग का रूप धारे केदारनाथ यानी भगवान शिव के बाहु की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि रावण ने इसी स्थान पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था.
बदले में भोले बाबा ने उसे अतुलनीय भुजबल प्रदान किया था. इस घटना के प्रतीक के रूप में यहाँ पर रावणमठ और रावण शिला या स्पीकिंग माउंटेन के नाम से विख्यात स्थान है।
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