Holi 2023 : देशभर में रंगों का त्यौहार होली धूमधाम से मनाया जा रहा है लेकिन रूद्रप्रयाग जिले में 3 ऐसे गांव हैं जहां बीते 375 साल के इतिहास में कभी भी होली नहीं मनाई गई। आखिर यहां क्यों नहीं मनाई जाती होली और होली ना मनाने के पीछे क्या कुछ प्रचलित कथाएं इसी को आज आपको बताएंगे।
Holi 2023 : 375 साल से नहीं मनाई होली
अबीर गुलाल के साथ होल्यार गांव से लेकर बाजारों में पहुंचने लगे हैं। देश भर में बच्चे जवान बूढे सभी होली के रंगों में रंग में रंगीन हो गये हैं, लेकिन रूद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लाक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव इस उत्साह और हलचल से कोसों दूर हैं, यहां न कोई होल्यार आता है और न ग्रामीण एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, 375 साल पहले जब इन गांव का बसाव हुआ था तब से आज तक इन तीनों गांव में होली नहीं मनाई गयी, हालंकि ऐसा नहीं है कि इन गॉव के लोगों को होली मनाना पसन्द नहीं है, बल्कि होली तो वो मनाना चाहते हैं लेकिन होली ना मनाने के पीछे खास वजह है।
अन्धविश्वास या ईष्टदेवी मां
रूद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर बसे क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव की इतिहास करीब 375 साल पूर्व का माना जाता है। यहां के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 375 वर्ष पूर्व यहां आकर बस गए थे, ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए थे जिसे गांव में स्थापित किया गया। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है इसलिए वे सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं।
Holi 2023 : यही नहीं गांववालों ने ये भी बताया कि उस समय जब इन गांवों में होली खेली गई तो तब यहां हैजा फैल गया था और इस बीमारी से कई लोगों की मौत हो गई थी तब से आज तक गांव में होली नहीं खेली गई है। अब इसे अन्धविश्वास कहें या ग्रामीणों की अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी पर आस्था लेकिन ये एक ऐसा सच है जो इन तीन गांवों की 15 पीढ़ीयां निभाती आ रहीं है और अब नई पीढ़ी भी उसी का अनुसरण कर रही है।
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